कल रात ८ बजे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को सम्बोधित किया , कोरोना से चल रहे विश्व युद्ध में भारत की भूमिका और उस युद्ध में हम कहाँ तक सफल हुए, साथ में आज़ादी के बाद आज तक का पहला सब से बड़ा २० लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज की इतनी बड़ी घोषणा हुई, स्वदेशी, टेक्नालोजी, इन्फ़्रस्ट्रक्चर, और मोदीजी का परम प्रिय मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट, उन्होंने अपने सम्बोधन में "आत्मनिर्भर भारत" की संकल्पना रखी, इस कोरोना महामारी के बीच जिस प्रकार से इस देश का व्यापारी , नौकरीपेशा, सभी को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा था, उसमें आशा की किरण, जैसे एक पिता अपने बेटे को परेशान देख उसके सर पर प्यार से हाथ फेरता है और कहता है क्यूँ चिंता कर रहा है मैं हूँ ना. बिलकुल इस तरह का एकदम ढाडस बँधाने वाला सभी राष्ट्र पुत्रों को प्रधानमंत्री जी का सम्बोधन था,
पर कुछ देर में ही कांग्रेस के नेताओं का वक्तव्य और उसका सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री जी को गंदी भद्दी भाषा में इतने बड़े राहत पैकेज का मज़ाक़ उड़ाते कांग्रेस, लेफ़्ट, जिहादी, माओवादी विचारधारा के लोग.
२०१४ से इस देश की राजनीति में एक अप्रत्याशित बदलाव आया है. लोगों ने २०१४ में सबसे भारी मात्रा में मतदान किया. युवा महिलायें, इनमें जो उत्साह दिखा ऐसा उत्साह शायद आज़ादी के बाद पहली बार देखने को मिला. रिज़ल्ट में मोदीजी के नेतृत्व को पूर्ण बहुमत मिला और राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के कमजोर और दिग्भर्मित नेतृत्व को करारी हार मिली. वैसे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जीतना हारना लगा रहता है. पार्टियाँ चुनाव जीतती हैं और चुनाव हारती है.
मगर बड़े दुःख कि बात है कि इस देश में एक विश्वसनीय, सभ्य आचरण वाला विपक्ष देश के पास नहीं है. जबकि आजादी के बाद और डेढ़ दशक पहले तक विपक्ष के नेताओं ने अपने कर्त्यव के दम पर, स्वच्छ आचरण के दम पर, अगर सत्ता में नही रहे तो भी जनता के दिलों पर राज किया. जयप्रकाश नारायणजी, अटलजी, आडवाणीजी, जॉर्ज फ़र्नांडिस जी सहित अनेक सिद्धांत वादी नेताओ के जब भाषण होते तो लाखों की संख्या में लोग उन्हें सुनने आते. उनमें कभी व्यक्तिगत बैर वैमनस्य देखने को नही मिला. विपक्ष सत्ता पाना चाहता था, लेकिन उसकी चाह कभी भयानक लालच और देशविरोधी तत्वों से गठजोड़ कभी देखने को नही मिला. राष्ट्र सर्वोपरि का नारा देकर अटलजी के नेतृत्व वाली सरकार मात्र एक वोट से गिर गई. तब अटलजी ने विपक्ष में बैठना मंज़ूर किया. कभी अपनी शैली में ग़लत शब्द या गाली-गलौज आने नही दिया. भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हो या नेता, सभी ने संयम और मर्यादा का हमेशा पालन किया और राजनीति में सभ्यता और मर्यादा की कई कई मिसाल पेश की.
मगर अब राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा ,सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ सत्ता से बाहर होने के बाद जैसे अपना आपा ही खो बैठी हैं. पार्टी के नाम पर परिवारवाद, कभी बेटा माता की जगह अध्यक्ष तो कभी बेटे की जगह माता अध्यक्ष और बहन प्रियंका वाड्रा, सारे विपक्ष की राजनीति बस इस परिवार के इर्द गिर्द घूम रही है. राजे राजकुमारों जैसा बर्ताव. एक चिढ़ और खीज साफ़ झलकती है इस परिवार के सदस्यों के हाव भाव से. जो नेतृत्व अपनी स्वयं की बुराइयों से जब तक बाहर नही आएगा वो अपने समर्थकों का कैसे नेतृत्व कर पाएगा. इस दुविधा के चलते कांग्रेस का कार्यकर्ता दिशाहीन हो गया है. सत्ता के लिए किसी से भी गठबंधन चाहे पाकिस्तान, चीन और देश के भीतर जिहादी ताकते हो या फिर चीनी समर्थित माओवादी शक्तियाँ, किसी भी प्रकार से देशहित में नही एक सत्ता का लालची चिढ़ा हुआ ग़ुस्सैल विपक्ष, लगातार होने वाली हार ने नेतृत्व में खीज पैदा कर दी है , जो उन के वक्तृत्व से साफ़ झलकती है. कांग्रेस प्रवक्ताओं का टीवी चैनलो पर रवैया, ऐंकर से गाली-गलौज , ट्विटर, फ़ेसबुक पर भद्दी भाषा, इनकी नेतृत्व हीनता, संगठन की कमज़ोरी अब खुल कर सामने आ रही है.
कोई कार्यकर्ताओं का सही मार्गदर्शन देने वाला नही, सबसे दुख कि बात ये है कि सेना और आतंकियों में से कांग्रेस आतंकियों, जेहादी, धर्मपरिवर्तन करने वाले मिशनरी शत्रुओं के साथ खड़ी मिलती है.
कोई नई घटना के पीछे कांग्रेस ख़ुद है, यह पोल खोल कई बार हो चुका है. पूरी कांग्रेस हिंदू इस शब्द से चिढ़ती है, यह देश के बच्चे बच्चे को मालूम है.
देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों को कांग्रेस ने हमेशा प्रमोट किया और उनका साथ दिया. यह सच्चाई अब जनता जान चुकी है, जो देश के लिए घातक है. चीनी राजदूत से राहुल गांधी की गुप्त बैठक और उसके बाद पहले बैठक को नकारना, फिर उसका फोटो मीडिया में आने पर सच्चाई उजागर होना. क्या यह परदे के पीछे शत्रु देश से मिल कर षड्यंत्र था? आज उसी चीन की वजह से पूरी दुनिया कोरोनावायरस का भयानक संकट झेल रही है. पर राहुल गांधी को अपने किए पर कोई अफसोस नहीं है.
पहले संसद में गम्भीर मुद्रा में भाषण करना, फिर अपने साथी को आँख मारना, बड़ा दुखद है.
पहले पक्ष में कांग्रेस ने लोगों को निराश किया और अब विपक्ष में लोगों को निराश कर रहे हैं. आज ये विपक्ष में है तो ये हाल है, कहीं सत्ता में आ गए तो देश किन विघटनकारी विनाशी शक्तियाँ, इस देश पर राज करेंगी ये बात लोग समझ रहे है.
इसलिए हर विपक्षी पार्टियों को अपने क़दम सिर्फ़ देश हित में रखना होगा. विघटनवादी शक्तियों से अपना नाता तोड़ना होगा. देश हित के फ़ैसलों का सम्मान समर्थन करना होगा. परिवारवाद को तिलांजलि दे कर राष्ट्रवादी युवकों और नेताओं को आगे बढ़ाना होगा. देश के हज़ारों साल पुराने सनातन हिंदू धर्म का आदर और रक्षा करनी होगी. देश हित के फ़ैसलों में सरकार के साथ खड़ा होना होगा और ग़लत फ़ैसलों का विरोध करना होगा. कहते है बिगड़े हुए असामाजिक तत्वों के साथ जो अपनी दोस्ती रखता है, समाज उससे अपनी दूरी बना लेता है. कांग्रेस को चाहिए आत्ममंथन करे, हारे हुए ,निराशावादी अपने को वंशानुगत भारत पर राज करने का लाइसेन्स मिला है, ऐसी सोच को दरकीनार कर अपने पक्ष को देशभक्ति के लिए मर मिटने वाले नौजवानो का समूह बनाकर देश हित में काम करेंगे, ऐसी शुभकामना के साथ में चाहता हूं श्री राम, श्री कृष्णा को आदर्श मानने वाला छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर महाराणा प्रताप और आचार्य चाणक्य का अभेद्य ऑर शक्तिशाली भारत की कल्पना.
जय हिन्द