हरदम अपनी उपेक्षा के कारण तार-तार हूँ, चिंदी हूँ,
गौर से देखो, मैं कोई और नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी हूँ
होना था महारानी, आज नौकरानी सी हालत है
अपने देश में ही घुट घुट जी रही हूं, लानत है
गोरी मेंम को राज सिंघासन और मुझे बनवास
कदम-कदम पर होता रहता, मेरा सदा उपहास
मै सिर्फ अपने मन की व्यथा बता रही हूँ
सोये हुए हिन्दुस्तानी जन को जगा रही हूँ
सारी दुनिया भारत को देख, इसलिए चमत्कृत है
क्यों कीं एक भाषा-माँ अपने घर में, बहिष्कृत है
अगर तुम्हे मेरे आंसू पोंछने है, तो आगे आओ
सोते हुए देश को जगाओ, मुझे गद्दी पर बिठाओ
आओ बदलो अपने आप को और हिंदी को अपना लो
कोई न छोड़ता अपनी माँ को, सारे जहां को बतला दो